“रिश्तों के धागे टूट रहे हैं ll
“रिश्तों के धागे टूट रहे हैं ll
हम अपनों को ही लूट रहे हैं ll
हम पैसे के पीछे भाग रहे हैं,
सारे सपने अपने छूट रहे हैं ll
आंख मूंदकर मंजिल ढूंढ रहे,
इसीलिये निशाना चूक रहे हैं ll
रिश्ते बचाने के लिए क्या करें,
उन्हीं से पूछिये, जो मूक रहे हैं ll
परिवार में बुजुर्गों को महत्व दीजिये,
बुजुर्गों से ही संस्कार महफूज़ रहे हैं ll
परायों से हसकर मिलना जुलना,
हम अपने अपनों से ही रूठ रहे हैं ll”