रिश्तों की मंडियां
रोज रिश्तों की सजती यहाँ मंडियाँ
खूब लगती रही है यहाँ बोलियाँ
मोल देकर मिलेगी पिता को खुशी
गर न तो जिन्दगी भरभरे सिसकियाँ
बेटियाँ है सुकोमल सुचंचल कली
मत लगाओं कभी इन पे पाबन्दियाँ
दौर हैवानियत का चलेगा सदा
पर पहन बैठ पाये न चूडिय़ां
मान सम्मान का रख रही वो ख्याल
दो कुलों में करे रोशनी बैटियाँ