रिश्तों की चादर
उधड़ी रिश्तों की चादर,
तो पैबंद लगाऐ हमने,
नज़रअंदाज किया कभी,
तो कुछ बन्द लगाऐ हमने…
ये एहतियात रखा हमने,
कि फासले कभी न हों,
बेवजह ही कितनी बार,
ताले जुबां पे लगाऐ हमने…
एकतरफा भला कब तक,
कोई करे तो क्या करे,
रोज ही ढ़हते गये यक़ीन,
जो दिल में बनाऐ हमने…
©विवेक’वारिद’*