रिश्तों का भरम
ये जो पारिवारिक और गैर पारिवारिक रिश्ते होते है ना । केवल किसी न किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही कायम रह पाते है । अगर किसी से भी जरा सी भी चूक हुई कि टूटने में भी समय नही लगता । क्योंकि ये रिश्ते होते ही है किसी कच्चे धागे के समान । अगर किसी भी रिश्ते में मजबूती लानी हो तो इसमें प्रेम और विश्वास रूपी चरखे की आवश्यकता होगी । जो धागों को आपस मे पिरोकर रख सके ।
रहिम जी ने वाकई सही ही कहा है कि,
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय ।
टूटे से फिर ना जुड़े, चाहे गांठ परि जाय ।।
जब किसी व्यक्ति की अच्छी खासी जीवन शैली होती है न तो उसके हजारो रिश्ते स्वतः ही बन जाते है । निम्न जीवन शैली वाले लोगो के रिश्ते सीमित होते है लेकिन बड़े पक्के होते है पूर्णतः विश्वास योग्य होते है ।
जीवन मे रिश्ते नही, बल्कि रिश्तों में जीवन होना चाहिए ।
अगर हम कही नए रिश्ते बना रहे तो हमे वर्तमान समय को देखते हुए अच्छे से जांच परख कर रिश्तों का चयन करना चाहिए क्योंकि हम आसानी से किसी पर भी विश्वास नही कर सकते क्योंकि कहा भी जाता है कि, आजकल विश्वास में भी विष का वास होता है ।।
© गोविन्द उईके