*रिश्तों का बाजार*
“रिश्तो का बाजार जारी है
अपने दर्द को महसूस करते है लोग
पर दूसरे के दर्द को समझते भी नहीं
यह कैसा व्यापार जारी है,
अपने तो बहुत है,
पर अपनों की तलाश जारी है
भीड़ बहुत है इंसानों की
पर इंसानियत यहाँ किस में है यही सोच जारी है
मतलब का किस्सा है आजकल रिश्तों में
बस निभाओ तो खुद से
वरना सामने से खामोशी जारी है,
जिंदा तो है हम सब
पर जिंदगी के बिना
लोग खुद को जरा भी देखते नही
पर औरों में खामियों का
सिलसिला जारी है,
ऐ खुदा यह कैसा सितम है
कहा कुछ तो लोग नाराज
और ना कहो तो अपने चेहरे की मायूसी जारी हैं”