रिश्तों का फूल
रिश्तों का फूल
मन में थी मिलने की इच्छा…
तभी तो गणपति ने हमको मिलाया है…
किसी से नहीं किया, सलाह मशवरा…
फिर भी हमने रिश्तों का फूल खिलाया है…
घर में मेरे जहाँ अंधेरा…
चारू तुमने प्रकाश चमकाया है…
हर मिलन एक किरण है…
ऐसा प्रकाश जगमगाया है…
जब मिट गई थी आस मिलन की…
तब छलकाई तुमने ये प्याली है…
संदेशों को पढ़कर मेरे होंठों पर…
छाई खुशहाली की यह लाली है…
सच्चे हैं संबंध जीवन के…
हंसकर तुमने गले लगाया है…
अंग्रेजी मुझे नहीं आती है…
मेरी हिंदी को तुमने सजाया है…
इतनी सारी मुश्किल सामने…
फिर भी इस कविता को मैंने बनाया है…
मन में थी मिलने की इच्छा…
तभी तो गणपति ने हमको मिलाया है…
सुनील पुष्करणा