रिश्तों का पेड़
इंसान एक जटिल प्राणी है। और उतना ही जटिल है उसका जीवन, क्यूंकि इंसान का जीवन एक शब्द पर अतिनिर्भर है, और वह शब्द है रिश्ते।
रिश्तों को समझना जितना मुश्किल है उतना ही मुश्किल है उनको निभाना। रिश्ते जितने नज़दीकी होते हैं उनको निभाने के लिए प्रयास भी उतने ही अधिक करने पड़ते हैं। परन्तु उन प्रयासों को हम खुशी खुशी करते हैं क्यूंकि नज़दीकी लोगों का महत्व ही जीवन में सबसे अधिक होता है।
कई बार इंसान गलतियां करता है । और रिश्ते टूटने की कगार पर आ जाते हैं। गलती कितनी बड़ी है, सामने वाला कितना उदार है, इसपर निर्भर करता है कि उस रिश्ते का भविष्य कैसा होगा।
परन्तु उदारता की भी एक सीमा होती है। अगर उदाहरण के तौर पर बोलूं तो रिश्ता एक पेड़ की तरह है।
प्रेम इस पेड़ के फल हैं , फल हैं तो पेड़ सुंदरता और मिठास से भरा होगा। परन्तु अगर फल टूट जाएं फिर भी पेड़ मजबूती से खड़ा रह सकता है और स्तिथि अनुकूल होने पर दोबारा से फल आ सकते हैं।
विश्वास इस पेड़ की शाखा की तरह है, अगर शाखा टूट जाए तो बड़ी हानि होती है, फल भी नहीं रहते, परन्तु अभी भी पेड़ मजबूती से खड़ा रह सकता है और समय के साथ नई शाखा आ सकती है जिसपर फिर से फल भी लग सकते हैं।
हमारे जीवन से जुड़े लोग इस पेड़ पर रहने वाले जंतुओं कि तरह हैं। हमारे प्रियजन वो भंवरे हैं जो दूसरे पेड़ो के सकारात्मक बीज हम तक लाते हैं और पेड़ को बढ़ने में मदद करते है।
हमारे दुश्मन दीमक की तरह हैं जो पेड़ को अंदर से खा कर उसको सड़ने की कगार पर ले आते हैं और हमारे दोस्त वो पक्षी हैं जो इन दीमकों को चुन चुन कर खा जाते हैं और पेड़ बच जाता है।
यह पेड़ बड़े से बड़े तूफान झेल लेता है और फिर से हरा भरा हो जाता है परन्तु अगर इसकी जड़ ही नष्ट हो जाए तो इसका सूखना तय है, और इस पेड़ की जड़ है सम्मान , अगर जड़ ही ना हो तो शाखा और फल की कल्पना भी नहीं हो सकती। बिना जड़ के पेड़ का जीवन संभव नहीं।
इसलिए हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हम हर रिश्ते का सम्मान बनाए रखें और किसी के आत्मसम्मान को ठेस ना पहुंचाएं। क्यूंकि फिर हरे भरे पेड़ की जगह जो बचेगा वो होंगे सूखे पत्ते और सूखी लकड़ियों के गट्ठर।