रिश्तों का जहरीला पेड़
हमने सुना था बुजुर्गों से कभी ,
रिश्ते रूपी वृक्ष को जितना ,
प्रेम रूपी जल से सींचे ,
फलते फूलते है अधिक तभी ।
परंतु वर्तमान में इस घोर कलयुग में,
इन रिश्तों को जितना भी पानी दें ,
जितनी भी देखभाल कर ले ,
नहीं फलते फूलते तब भी ।
और यदि फलित भी हों जाए ,
तो कांटे ही देते है फूल नहीं देते कभी भी ।
जीवन भर जिनकी चुभन से ,
जख्मी होती है भावनाएं।
और यदि किस्मत से फूल आ भी जाए ,
तो वो मन को आह्लादित नहीं करते कभी ।
अपितु अपनी निकृष्ट बुद्धि से ,
दुर्गंध फैलाते श्वास खुलके लेना चाहें जब भी ।
भला ऐसे कागजी फूलों का,
इन जहरीले कांटों का ,
जीवन में औचित्य क्या है ?
क्यों बने है यह रिश्ते?
इन रिश्तों से बंधे रहने की ,
विवशता बहुत पीड़ा देती है जब कभी ।
निराशा से भर जाता है जीवन ,
आंसुओं की बरसात आंखों से होती है तभी ।