रिश्तों का एहसास
रिश्तों का एहसास
जैसे ही डॉक्टर ने बताया कि नेताजी की दोनों ही किडनियाँ पूरी तरह से खराब हो चुकी हैं और जब तक एक स्वस्थ व्यक्ति के किडनी का ट्रांसप्लांट न किया जाए, तब तक नेताजी की जान खतरे में है, सब लोग सकते में आ गए।
कल तक ‘जहाँ आपका पसीना गिरेगा, हम अपनी खून गिराएँगे’ का नारा अलापने वाले पार्टी और परिजन कन्नी काटने लगे। बोलना अलग चीज है और यूँ अपनी जान जोखिम में डालना अलग। नेताजी की बहुओं ने दबी जुबान से अपने-अपने पतियों को अपना अंतिम फैसला सुना दिया था, “देखिए जी, आपको बुरा लगे, तो लगे। मैं अपनी बात साफ-साफ कहे देती हूँ। पापाजी अपनी लाइफ तो जी चुके। अब उनके लिए आप अपनी जान खतरे में डालने की सोचना भी मत। अभी हमारी पूरी लाइफ पड़ी है। कुछ भी डिसीजन लेने से पहले आप बच्चों के बारे में जरूर सोचिएगा।”
नेताजी के किडनी फेलियर की बात सुनते ही उनकी बड़ी बेटी व्याकुल-सी हो गई। वह डॉक्टर से बोली, “सर, मैं पापाजी को अपनी एक किडनी डोनेट करूँगी। आप तुरंत इसकी प्रोसेस शुरू कर दीजिए।”
नेताजी वर्तमान में रिसते रिश्तों के दौर में बिटिया का उनके प्रति स्नेह, समर्पण और अकल्पनीय पारिवारिक दायित्व को देखकर अपना सारा दर्द भूल गए। स्नेहासिक्त स्वर में बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, “बेटा, तेरा बाप इतना कमजोर नहीं है कि वह अपनी बेटी की किडनी के सहारे जिए। तुम मेरी बिल्कुल भी चिंता मत करो। मुझे कुछ नहीं होने वाला है। इतनी आसानी से मैं मरनेवाला नहीं हूँ। इन डॉक्टर्स का क्या है, ये तो कुछ भी बोल देते हैं। उन्हें अपना धंधा जो चलाना है।”
बिटिया बोली, “पर पापाजी, आपकी ऐसी हालत हमसे देखी नहीं जा रही…। कितने कमजोर हो गए हैं आप।”
नेताजी ने उसे आश्वस्त किया, “बेटा, ये मेरे प्रति तुम्हारा स्नेह है। तुम चिंता मत करो। सब ठीक हो जाएगा। तुम देखना, बहुत जल्द मुझे कोई ब्रेन डेड या गंभीर दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति का किडनी मिल जाएगा और मैं अपने नाती-पोतों के साथ फुटबॉल खेलूँगा।”
बिटिया बोली, “पापा, मेरे एक किडनी डोनेट करने से मुझे कुछ नहीं होगा। इस दुनिया में लाखों ऐसे लोग हैं, जो एक किडनी के सहारे सामान्य लोगों की भाँति जीवन बिता रहे हैं।”
नेताजी बोले, “बेटा, मैं तुम्हारी भावनाओं की कद्र करता हूँ। मैं उन लाखों लोगों से जुदा हूँ। मुझमें इतना हौंसला नहीं है कि अपनी बेटी की किडनी का बोझ दिल में उठाकर सामान्य जीवन जी सकूँ।”
बिटिया तड़प उठी, “पर पापा…”
नेताजी बीच में बोल पड़े, “बस्स। बाप हूँ मैं तुम्हारा। मेरी अम्मा बनने की कोशिश मत करो। अब आगे और कुछ नहीं सुनना है मुझे। बस हफ्ता-पंद्रह दिन का इंतजार और कर लो। तब तक इंतजाम हो ही जाएगा बेटा। ईश्वर पर भरोसा रखो। वे कुछ न कुछ रास्ता जरूर निकालेंगे।”
पिता की बात सुनकर बिटिया निःशब्द हो ईश्वर को याद करने लगी।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़