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28 Jul 2023 · 1 min read

रिश्ते

ये जो रिश्ते हैं ना
ये झट से नहीं टूट जाते
इनके टूटने की भी
एक सतत प्रक्रिया होती है
पहले दीवारों पर जैसे दरारों की
अनुभूति होती है ना
ठीक वैसे ही दरकते हैं रिश्ते
हम सहानुभूति के
‘व्हाइट सीमेंट’
का करते हैं उपयोग
भरती हैं दरारें कुछ दिनों के लिए
मगर सभी को नज़र आते हैं
वो दाग
हम संतुष्ट होते हैं पल भर को
चलो हमने दरकते छत को
ठीक कर लिया
अगली बार फिर से दरकते हैं ‘अपने’
थोड़ी बड़ी हो जाती है दरार
हम बुलाते हैं राजमिस्त्री को
प्रयास करता है वह
फिर से दरार के हिस्से को गिराकर
खड़ी करता है एक नयी दीवार
सब कुछ अच्छा लगता है
कुछ दिनों तक
परंतु दरकते दीवार की आत्मा
दरकने को तड़पती रहती है
ईश्वर से मांगती हैं ‘दीवारें’
‘इच्छामृत्यु’
ईश्वर तथास्तु कहकर
मुक्त हो जाता है
तड़पते ‘रिश्ते’की आत्मा
शांत हो जाती है
कोई नहीं मिल पाता
बस एक तड़प सी
सभी के दिल मे रह जाती है।
रिश्तों का ‘भूगोल’
जब भी ‘राजनीति’ का शिकार होता है
रिश्ते ‘इतिहास’ बन जाते हैं।
–अनिल कुमार मिश्र,रांची झारखंड

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 180 Views
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