रिश्ते
सारे रिश्ते टूट गए हैं,हम भी तुमसे रूठ गए हैं
तुम जो हमसे दूर हुए हो हम भी भ्रम से दूर हुए हैं
सिले-सिलाए रिश्ते लेकर क्या चलना है
झिलमिल-झिलमिल पथ के हम भी पथिक बने हैं।
भ्रम इतना क्यों बना रहा,अफ़सोस यही है
तू अपना बनकर रहा पराया,दोष यही है
ईश से तुझको माँगा मैंने हाथ जोड़कर
मिला मुझे इस रूप में तू अफ़सोस यही है।
तेरी गलती के लिए क्षमा मैं माँगा सबसे
बस तेरे ही साथ रहा मैं,लड़ा जगत् से
बचपन का तेरा रूप लुभावन,चक्षु पटल पर रहता है
दिल से उतर गए तुम सब अब,ह्रदय यही अब कहता है।
जी भर रक्त पिया तुम सबने,सब रिश्तों का खून किया
संवेदना को मारकर फिर भावना को मृत किया
अब बचा कुछ शेष है ना,दूर मुझसे तुम रहो
चैन के दो साँस लेकर,मैं भी जियूँ, तुम भी जियो।
~~~अनिल मिश्र,प्रकाशित कविता”जियो तुम भी…..”
का एक अंश