रिश्ते
रिश्ते”
रिश्ते अब स्वार्थ के आगे बिखरने लगे हैं,
सामाजिकता में मूल्य अब गिरने लगे हैं।
स्वार्थ अब सिर पर चढ़ कर बोल रहा है,
मानव रिश्तों को लाभ हानि में तोल रहा है।
कोरोना वाइरस सा व्याप्त है अज्ञात डर,
वसीयत लिखी जाने लगी है अब घर-घर।
सम्पर्क के संसाधन तो अब भरपूर हो गए,
विडंबना पर रिश्ते एक दूजे से दूर हो गए।
जन-जन में अवसाद के क़िस्से भी आम हो गए,
एकल जीवन, रिश्तों की टूटन ही अंजाम हो गए।
रिश्तों में बिखराव समाज का व्यापक रोग है,
शायद इसके मूल में स्वार्थ और लोभ है।
इंसान रिश्तों के मामले में आज बेईमान हो गया,
स्वार्थ व विश्वासघात ही जैसे उसका ईमान हो गया।
ये मानव की बदक़िस्मती है, सहूर नहीं है,
विनाश तो सिर पर खड़ा अब दूर नहीं है।