रिश्ते
कहीं मसरूफियत तेरी न बने रिश्ता ए तबाही
रिश्ते भी चाहते है तवज्जो अदायगी ।
फुरसत में कभी बैठो बयां हाल-ए-दिल करो
होगी तसब्वुर दिल में ख़ामख्वाह ताज़गी ।
इस नामुराद वक्त से चुरा ले पल दो पल
बेफ़िक्र होके कल से जी ले आज ज़िन्दगी ।
बख्शी खुदा ने जो तमाम रिश्तों को नेअमते
तहज़ीब से संवार ले रिश्तों की सादगी |
तफ्शीश में लगा है तू मुनाफ़े कहां हुए ?
दिल में सुकूं रख, कर खुदा की बन्दगी ।
मुकम्मल कहां हुई किसी की सारी चाहते
फुरसत नहीं तू जाने क्या है तेरी तृष्णगी ।