रिश्ते
मानवता है कहाँ जा रही देख लो।
रिश्तों पर है धूल चढ़ रही देख लो।।
बंधु बांधव फूटी आँख न भाता है
भाई बहन का रिश्ता भी शर्माता है
माता की ममता का आँचल सूखा है
बाप आजकल बेटों से घबराता है
आया बच्चे पाल रही है देख लो। रिश्तों पर……
पानी में भी आग लगानी आती है
ना कोई नाना और न कोई नाती है
जानबूझकर जहाँ दूरियाँ बनती हों
ऐसी ही सबको शिक्षा दी जाती है
प्यास प्यार की कहाँ जा रही देख लो। रिश्तों पर….
धन संचय का पाठ पढाया जाता है
सामाजिक संस्कार दुराया जाता है
आँसू भी तो आज नहीं होते सच्चे
बस केवल अधिकार सिखाया जाता है
कर्तव्यों की मौत हो रही देख लो। रिश्तों पर….
गंगा जमुना भी निश्चित रोती होगी
बूढ़ी माँ जब वृद्धाश्रम सोती होगी
हिमगिरि के भी तो आँसू आते होंगे
बच्चों से जब माँ झिड़की खाती होगी
लाज दूध की कहाँ जा रही देख लो। रिश्तों पर….
जिनसे आशा की थी राम नहीं निकले
देवों के भी दूत नहीं सच्चे निकले
ऐसे में बाबाओं का है क्या कहना
सौ देखे तो एक कहीँ सच्चे निकले
बाबाओं की लूट मची रही देख लो। रिश्तों पर….
नैतिकता के पाठ पढ़ाये जाते हों
सामाजिक संस्कार सिखाये जाते हों
हर रिश्ते में मिलती जहाँ मिठास भरी
कण-कण में भगवान बताये जाते हों
ऐसा कोई घर पाओ तो देख लो। रिश्तों पर….
मानवता है कहाँ जा रही देख लो
रिश्तों पर है धूल चढ़ रही देख लो
अशोक मिश्र