रिश्ते
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विधा-गीतिका
आधार छन्द-विधाता
मापनी-1222 1222 1222 1222
समान्त-आर पदान्त-को देखा
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सदा रिश्तों की चौखट पर बिलखते प्यार को देखा
महज धन के लिये रोते दुखी संसार को देखा।
नहीं उपलब्ध गाँवों में चिकित्सा और शिक्षा है
पलायन के लिये मजबूर हर लाचार को देखा।
कभी संस्कार से परिपूर्ण थी शिक्षा पुरानी जो
उसी के आधुनिक बढ़ते हुये व्यापार को देखा।
हमेशा माँ पिता की जो करें सेवा खुशी मन से
सदा खुशियों भरे उनके सुखी घरबार को देखा।
हमारे पूर्वजों ने जो बनाई थी बड़े श्रम से
उसी संस्कार की ढहती हुई दीवार को देखा।
कहीं मिलता नहीं अब शुद्ध भोजन दूध या पानी
मिलावट के जहर से बस भरे बाजार को देखा।
डॉ. दिनेश चंद्र भट्ट