रिश्ते
हम रिश्ते नाते कहां समझते हैं।
बस जरूरत और सोच रखते हैं।
रिश्ते और स्वार्थ संग रहते हैं।
आज के दौर अपने कहां होते हैं।
सच और सही राह हम लिखते हैं।
रिश्ते तो आज बाजार बने रहते हैं।
जिस रिश्ते में धन संपत्ति रहते हैं।
वहीं रिश्ते आज बस बंधें होते हैं।
सोच हमारी अपनी रिश्ते कहते हैं।
चार दिन की मेहमान जिंदगी कहते हैं।
न कुछ लाए न कुछ ले जाना जानते हैं।
बस हम रिश्ते नाते झूठ फरेब करते हैं।
यही जवाब जीवन में हम सब कहते हैं।
रिश्ते और नाते बस समय समझ होते हैं।
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