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6 Feb 2024 · 1 min read

रिश्ते से बाहर निकले हैं – संदीप ठाकुर

रिश्ते से बाहर निकले हैं
सदमे से बाहर निकले हैं

बरसों अंदर अंदर घुट कर
झटके से बाहर निकले हैं

आज उदासी तन्हाई के
क़ब्ज़े से बाहर निकले हैं

नींद हमारी टूट गई है
सपने से बाहर निकले हैं

हर चादर से पैर हमारे
थोड़े से बाहर निकले हैं

दिल में पिंजरा लेकर पंछी
पिंजरे से बाहर निकले हैं

लोग घुसे थे एक महल में
मलबे से बाहर निकले हैं

इस मंज़िल के सारे रस्ते
नक़्शे से बाहर निकले हैं

संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur

283 Views
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