रिश्ते “”मानवता”” से जोड़ते है ( गजल / गीतिका)
संभले खुद नहीं सलाह अब देने लगे।
आई “अनुशासन” की बात खुद पहले भगै।।
“उपदेश” देना अब आम हो गया।
लगाई न प्रीत अपनों से,कहते फिर भी हम सगे।।
“भरोसा” था हमको तुमपे हद से ज्यादा।
लगी जरूरत उस वक़्त दे गए दगे।।
किया “”वादा”” आएंगे मिलने तुमसे हम।
“इंतजार” में हम एक नहीं कई रातें जगे।।
“गरीबी” बेबसी में पला बड़ा,पड़ न सका।
जाता हूं बाजार मुझे हर कोई ठगे।।
चलो सब छोड़ते है,रिश्ते “मानवता” के जोड़ते है।
तन मन कहता”अनुनय” कहती सारी रगे।।
राजेश व्यास अनुनय