रिश्ते भूल गया दूर हो के ||ग़ज़ल||
रिश्ते भूल गया दूर हो के
क्यों अँधेरा ज़िंदगी नूर हो के
जीना तू तो भूल ही गया
दौलत के नशे में चूर हो के
क्यों तूने अपना घर उजाडा
किस बात से मजबूर हो के
आज़ाद नहीं खुला आसमा में
तू दुनिया में मशहूर हो के
क्या मोड़ आई है ज़िंदगी की
काट रहे है सजा बेकसूर हो के