रिश्ते बेटी बिना अधूरे
गीतिका
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आधार छन्द-द्विगुण चौपाई
(16,16 मात्रा,अंत में 21/गाल वर्जित,आदि में द्विकल+त्रिकल+त्रिकल वर्जित,मापनी मुक्त)
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कचरे के डिब्बे में छोड़ी, किसने ये नवजात कली है
भूख प्यास से तड़प-तड़प कर,जो दुनिया को छोड़ चली है।
फूल नहीं बन पाई खिलकर,तोड़ दिया उगने से पहले
वारिस की चाहत में बेटी,बार बार जाती कुचली है।
सुबह शाम सब पूज रहे हैं,चंडी दुर्गा लक्ष्मी को जब
फिर क्यों अबला की चीखों से,गूँज रही हर गली गली है।
रिश्ते बेटी बिना अधूरे,सुनो जरा बेटे वालो तुम
सुख दुख में माँ बापू के सँग, हरदम बेटी साथ चली है।
हुई सभ्यता है शर्मिंदा,घुट-घुट कर रोई मानवता
दानव दुष्ट दहेज़ के हाथों,फिर से बेटी एक जली है।
सब दोषी हैं माली मालिक,रौंद रहे सुन्दर बगिया को
नारी भी नारी की दुश्मन,इसका चेहरा भी नकली है।
बेटा बेटी एक बराबर,नारा ये भाषण तक सीमित
नई सदी के मानव की पर,सोच नहीं बिल्कुल बदली है।
नारी त्याग करुणा की देवी,दो सम्मान इसे जीवन में
ममता प्यार दुलार मिलेगा,ओ मानव ये सुख असली है।
जुर्म नहीं करना नारी पर,कहता भट्ट यही दुनिया से
कन्या का अस्तित्व बचेगा,तभी रहे पीढ़ी अगली है।
डॉ. दिनेश चन्द्र भट्ट,गौचर(चमोली)उत्तराखण्ड