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16 Mar 2024 · 1 min read

रिश्ते नातों के बोझ को उठाए फिरता हूॅ॑

रिश्ते नातों के बोझ को उठाए फिरता हूॅ॑
संभालता हूॅ॑ हर घड़ी बेशक मैं गिरता हूॅ॑
उनको फिक्र हो ना हो चाहे इस बात की
बिखर न जाएं रिश्ते कहीं मैं तो डरता हूॅ॑

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