रिश्ते नातों के बोझ को उठाए फिरता हूॅ॑
रिश्ते नातों के बोझ को उठाए फिरता हूॅ॑
संभालता हूॅ॑ हर घड़ी बेशक मैं गिरता हूॅ॑
उनको फिक्र हो ना हो चाहे इस बात की
बिखर न जाएं रिश्ते कहीं मैं तो डरता हूॅ॑
रिश्ते नातों के बोझ को उठाए फिरता हूॅ॑
संभालता हूॅ॑ हर घड़ी बेशक मैं गिरता हूॅ॑
उनको फिक्र हो ना हो चाहे इस बात की
बिखर न जाएं रिश्ते कहीं मैं तो डरता हूॅ॑