रिश्ते नाते वो मुझसे……, सभी तोड़ कर।
रिश्ते नाते वो मुझसे……, सभी तोड़ कर।
जा रही…., दूर से…, हाथ यूँ जोड़ कर…!
क्या ख़ता है मेरी.. क्या गुनाह कर दिया.?
सामने आज बैठी….., जो’ मुँह मोड़ कर।
कसमें, वादे, तसल्ली…, थे’ झूठे.., सभी,
ऐसा बोली वो’ ऊँगली….., मेरी छोड़कर।
ख़ुद को मासूम, नादां…….., जताती रही,
जाने कितने ही’ लफ़्ज़ों के’ बम फोड़कर।
दर्द, आँसू, तड़प और’ घुटन…., के सिवा,
क्या मिला आज.. मासूमियत ओढ़कर..?
पंकज शर्मा “परिंदा”