“रिश्ते की डोर “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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नयी मित्रता
की ओर बढ़ रहे हैं
फेस बुक के पन्नों में
नये दोस्त ढूंड रहे हैं
प्रकृति का
नियम ही है
बदलना
और आगे चलना
कभी भी इस
जीवन में
किसी से पीछे
नहीं रहना
प्रतिस्पर्धा
नहीं तो कुछ
नहीं
सफलता नहीं
तो कुछ भी नहीं
विचारों से
जब मेल
खाता है
लेखनी जब
अच्छी लगती है
ऋदय के तार
बजने लगते हैं
नयी रागनी कोई
पुनः
पनपती है
एक से दो
दो से चार
मित्रों का
कारवां बनता चला
और पीछे रह गये रिश्तों के काफिले
हम भले ही
आज भटकें
रास्ते को छोड़ के
दिल दुखे तो क्या हुआ
उस दिशा से मोड़के
चल दिए हैं आज हम
नव युग बनाने
और पीछे रह गया
मौसम सुहाने
हो रहा एहसास
याद उनकी आ पड़ी
हम न भूलेंगे कभी
डोर रिश्तों की लड़ी !!
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड