“रिश्ते की डोर “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
===========
नयी मित्रता
की ओर बढ़ रहे हैं
फेस बुक के पन्नों में
नये दोस्त ढूंड रहे हैं !
प्रकृति का
नियम ही है
बदलना
और आगे चलना !
कभी भी इस
जीवन में
किसी से पीछे
नहीं रहना !
प्रतिस्प्रदा
नहीं तो कुछ
नहीं
सफलता नहीं
तोकुछ भी नहीं !
विचारों से
जब मेल
खाता है
लेखनी जब
अच्छी लगती है
ऋदय के तार
बजने लगते हैं !
नयी रागनी कोई
पुनः
पनपती है !
एक से दो
दो से चार
मित्रों का
कारवां बनता चला
और पीछे रह गये रिश्तों के काफिले !
हम भले ही
आज भटकें
रास्ते को छोड़ के
दिल दुखे तो क्या हुआ
उस दिशा से मोड़के !
चल दिए हैं आज हम
नव युग बनाने
और पीछे रह गए
मौसम सुहाने !
हो रहा एहसास
याद उनकी आ पड़ी
हम न भूलेंगे कभी
डोर रिश्तों की लड़ी !!!——
=====================
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका