रिश्ते का मोह !
रिश्ते का मोह !
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कितना बड़ा अवरोध है ये !
अपनों से रिश्ते का मोह….
जो एक सीमा से आगे बढ़ने ही नहीं देता !
मार्ग ही आगे का अवरूद्ध ये कर देता !!
मन की तनिक भी नहीं चलने देता !
दोराहे पर लाकर खड़े ये कर देता !!
मन की भावनाओं के आड़े आ जाता !
किंकर्तव्यविमूढ़ता के भाव जागृत ये कर देता !!
कितना बड़ा अवरोध है ये !
अपनों से रिश्ते का मोह….
एक ऐसा अदृश्य सा बंधन है ये ….
कुछ पता भी नहीं चलने देता !!
सारी प्रक्रियाएं बस, यूॅं ही चलती रहती !
और मनुष्य कर्त्तव्य-पथ पर अपने….
बस, किसी तरह से आगे बढ़ते रहता !!
अदृश्य चुम्बक की तरह सदा ये खींचता रहता !
अज्ञात चुम्बकीय शक्ति जैसा प्रभावित ये करता !!
ममता मोह का ये भॅंवरजाल बाॅंध के खुद में रखता !
रिश्ते का ये मोह और न जाने क्या-क्या है कर सकता !!
कितना बड़ा अवरोध है ये !
अपनों से रिश्ते का मोह….
सीमित दायरे में ही बाॅंध के ये रखता !
आगे की कुछ और सोचने ही नहीं देता….
ख़ास चीज़ों को ही कर्तव्य के दायरे में लाता….
उससे आगे की सोच कुंठित ही करता जाता….
निष्पक्षता पे भी कभी ये प्रश्न-चिन्ह लगाता !
लोगों की नज़रों में भी कभी-कभी झुकाता !!
असमंजस की स्थिति में फॅंसा कर ये रखता !
रिश्तों तक ही किसी की दुनिया सीमित रखता !!
कितना बड़ा अवरोध है ये !
अपनों से रिश्ते का मोह….
जो कोई भी रिश्ते का ये मायाजाल तोड़ता !
दिलो-दिमाग उसका सदा स्वतंत्र होके रहता !!
खुले आकाश में वो स्वच्छंद विचरण करता !
हर नैसर्गिक चीज़ों से वो समान बर्ताव करता !!
समाज – सेवा के लिए स्वतंत्र वो हो सकता !
देश-दुनिया के और भी करीब पहुॅंच सकता !!
संसार के हर प्राणी की आह वो सुन सकता !
त्याग के ये बंधन निर्बाध विचरण कर सकता !!
त्याग के ये बंधन निर्बाध विचरण कर सकता !!
सचमुच, इस नश्वर से संसार में….
कुछ कर गुजरने के लिए….
कितना बड़ा अवरोध है ये !
अपनों से रिश्ते का मोह….
अपनों से ये रिश्ते का मोह….
__स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कुमार कर्ण ।
-__किशनगंज ( बिहार )