रिश्ते और तहज़ीब
रिश्ते और तहज़ीब
रिश्ते आजकल बनते हैं पगार और हुस्न पर,संस्कार, गुण, तहज़ीब अब नजरअंदाज कर दिए जाते हैं।
पैसे और स्टेटस की चमक में,सच्चे रिश्ते कहीं खो जाते हैं।।
कभी रिश्ते होते थे दिल से दिल की बात,अब तो हर रिश्ता बनता है पैसे की सौगात।
खूबसरती से सजे रिश्ते,अंदर से खोखले होते हैं।।
जिन्हें समझा था साथी अपना,वही बन जाते हैं दूर के मुसाफिर।
दौलत और शोहरत के पीछे भागते,इंसानियत कहीं छूट जाती है।।
आज प्रेम बन गया है एक मज़ाक,और शादियाँ एक तमाशा।
न जाने किस मोड़ पर खड़ा है ये समाज,जहाँ रिश्तों में रह गई है बस दिखावे की प्यास।।
संस्कार और तहज़ीब की जो कमी है,वो रिश्तों में बढ़ा देती है दूरी।
पैसे और शोहरत की इस दौड़ में,खो गई है रिश्तों की वो सच्ची रोशनी।।
इसलिए रिश्ते बनाओ समझदारी से,जहाँ हो संस्कार और तहज़ीब की रौशनी।
पैसा और स्टेटस आते-जाते रहेंगे,पर रिश्तों की सच्चाई, हमेशा दिलों में बसेगी।।