रिश्ता
लघुकथा
रिश्ता
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मोबाइल की घंटी लगातार चीख रही थी।
उसने देखा तो रवि का नंबर आ रहा था। रिसीव किया तो सामने वाले ने पूछा – क्या आप इस नंबर वाले को जानती हैं?
वो हड़बड़ा गई और बोली – हां।
उधर से आवाज आई -आप …… अस्पताल आ जाइए। मोबाइल वाले शख्स का एक्सीडेंट हो गया है।
एक क्षण के लिए वो सोचने लगी कि जाये न जाये, क्योंकि वह रवि से कभी मिली नहीं थी। फिर जाने का निर्णय लिया, क्योंकि आभासी दुनिया से जुड़े होने के बाद भी रवि उसे हमेशा बड़ी बहन का स्थान देता है। ऐसे में उसे इस हालत में छोड़ना उचित भी नहीं है।और फिर अपने पापा को फोन पर अवगत कराकर उन्हें भी वहीं पहुंचने के लिए कहकर निकल पड़ी।
थोड़ी देर में वो अस्पताल पहुंच गई। डाक्टर से मिलकर वह रवि का हाल जानने को उतावली हो रही थी।
डाक्टर ने पूछा कि मरीज से आपका क्या संबंध है? क्योंकि कि मरीज की हालत बहुत खराब है। तुरन्त आपरेशन करना पड़ेगा।आप यहां हस्ताक्षर कर दें।
उसने अपना भाई बताते हुए हस्ताक्षर कर दिए और डाक्टर से बोली -आप आपरेशन कीजिए, मेरे पापा आते ही होंगे।
अब उसे आत्मसंतोष था कि आभासी रिश्तों की महक को उसने वास्तविक रंग दे दिया। उसका विश्वास था कि रवि को कुछ नहीं हो सकता। बहन का विश्वास कभी टूट नहीं सकता।
और अंततः उसका विश्वास जीत गया। उसने अपने मुंहबोले अनदेखे भाई को बचा जो लिया।
उसकी आंखों में रवि के लिए दु:आ तो उसके बच जाने की खुशी के आँसू अविराम बह रहे थे जो रवि की कलाई को भिगो रहे थे।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
८११५२८५९२१
© मौलिक, स्वरचित,