रिश्ता
अक्सर महिलाएं रिश्तों को उनकी जड़ , एवं गहराई तक जानने की बड़ी उत्सुकता रखतीं हैं । अमुक व्यक्ति का अमुक महिला से क्या संबंध है जानने में प्रायः पुरुषों की उतनी गहन रुचि नहीं होती है और अक्सर समझ भी नहीं पाते । कभी-कभी कुछ रिश्ते समझने में इतने मुश्किल होते हैं कि उन्हें किसी ना किसी के साथ होने वाले संबंधों का उदाहरण देकर स्पष्ट करना पड़ता है । एक बार ऐसे ही डॉ संतलाल जी की पत्नी उनके अस्पताल परिसर में रह रहे समाज से स्वीकृति प्राप्त किसी अविवाहित वयस्क नर एवं नारी के जोड़े के आपसी पेंचीदे संबंध के बारे में उन्हीं के गांव से किसी मरीज के साथ आई किसी ग्रामीण अनपढ़ महिला से समझने का प्रयास कर रही थीं । डॉ साहब भी कुछ दूरी पर खड़े हो कर उनकी बातों को अनसुना कर रहे थे । काफी देर तक उस जोड़े के आपसी संबंध को अपने पूरे प्रयास लगाने के बाद भी वह महिला उनकी पत्नी को उस युगल जोड़ी के आपसी संबंध को स्पष्ट करने में असफल रही।
अंत में और कुरेदे जाने पर उस ग्रामीण महिला ने अपनी बात को सरल एवं आसान शब्दों में उदाहरण देते हुए कुछ इस प्रकार डॉ संतलाल जी की पत्नी को समझाया
‘ देखो मैडम जी जैसे अब जो यह तुम्हारे पास में डॉक्टर साहब खड़े हैं ये रिश्ते में तुम्हारे पति भी हैं और इनसे जो तुम्हारे लौंडा – लौंडिया हैं वो तुम्हारे बेटा – बेटी हुए ,ठीक है ।
अब अगर मान लो कि ये तुम्हारे पति डॉक्टर ना होकर कोई थानेदार हैं और इनका तबादला इधर-उधर कई थानों में होता रहता है और तुम अपने बच्चों को लेकर यहां रहती हो , पर जब यह थानेदार साहब कई साल पहले अपनी जवानी के दिनों में दूर-दूर तबादले पर थानों वाली जगह पर अकेले रहते रहे , तो उस बीच वहां अलग – अलग , थानों थानों पर जो थानेदार साहब के किसी से जो लौंडा , लौंडिया पैदा हुए उनसे जो तुम्हारे बच्चों का रिश्ता होगा बस वही रिश्ता इन दोनों का समझ लो ।
रिश्तों से बाहर जाकर बने इस रिश्ते का संबंध अब मुझे भी कुछ कुछ समझ में आ गया था।मेरे अंतर मन में आवाज प्रतिध्वनि हुई
‘ लो और समझ लो इस रिश्ते को ।’
डॉ साहब की पत्नी ने त्योरियां चढ़ाकर तिरछी सन्देहास्पद निगाहों से उनको घूरा और वे अनदेखी करता हुआ वहां से खिसक लिए ।
वे इस नाज़ुक घड़ी में अपनी श्रीमती जी को न्यायालय से मान्यता प्राप्त लिव- इन सम्बन्धों की चर्चा छेड़ कर इस विषय को और नहीं छेड़ने में अपनी भलाई समझ रहे थे ।