” रिश्ता प्यार का “
प्रतिमा : जब समझती है तो बहस क्यों कर रही है चुप रह…
सुधा : बसह कहाँ कर रही हूँ मैं तो रिक्वैस्ट कर रही हूँ प्लीज़ भाभी मेरी बात को भी समझीये…
प्रतिमा : समझ रही हूँ तभी तो समझा रही हूँ पर तू नही समझ रही है
इतने में पीछे से भईया की आवाज़ आती हैं ” अरे भाई तुम ननद भाभी बाहर आँगन में आ जाओ यहीं अखाड़ा खुदवा देता हूँ ( जोर से हँसते हैं )
” सुधा और प्रतिमा एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कराती हैं ”
सुधा : भईया मज़ाक मत किजिये आप और भाभी दोनो मेरी बात को सीरियसली कभी नही लेते हैं ( दुखी होती है )
प्रतिमा : अरे ऐसा कुछ नही है जैसा तू समझ रही है माँ को यहीं रहने दे तेरा घर है जब चाहे आ कर रह ले माँ के पास , तेरे आने से हमारा भी मन लग जाता है माँ भी तुझे और बच्चों को देख खुश हो जाती हैं ।
सुधा : ” भाभी ” बोलते हुये प्रतिमा से लिपट जाती है …आप मेरी दूसरी माँ हैं
प्रतिमा : “सुधा को दुलारती हुयी ” बड़ा लाड़ आ रहा है भभी पे …
सुधा : क्यों ना आये आप हो ही ऐसी तभी तो सब आपसे इतना प्यार करते हैं ।
प्रतिमा : अब हो गया …जब से आई है पानी तक को हाथ नही लगाया है चल अब कुछ खा ले बाकी बातें बाद में करेगें ।
सुधा : फिर से प्रतिमा से लिपट जाती है …भाभी आप के रहते मैं माँ की तरफ से एकदम निश्चिंत हो जाती हूँ …थैकं यू भाभी थैंक यू सो मच…
प्रतिमा : थैंक यू ? अरे तू तो फॉरमल होने लगी ” और दोनो एक दूसरे को पकड़ कर जोर से हँसती हैं ”
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 11/08/2019 )