रिवायत
” रिवायत ”
कसम झूठी खाने की रिवायत तो नहीं है ।
कैसे कहूँ उनसे…… शिकायत तो नहीं है ।।
इक सच पर टिका है बस ज़िन्दगी का खेल ।
झूठ बोलने की उनको इजाज़त तो नहीं है ।।
यूँ तो हूँ क़ायल………. मैं सब ज़बानों का ।
उर्दू के जैसी सब में…. नफ़ासत तो नहीं है ।।
ये लेन देन…….. आँसूओं और ग़मों का है ।
सौदे में बेवफ़ाई के… किफ़ायत तो नहीं है ।।
ख़्वाबों में कोई और, दिल में है कोई और ।
वासिफ़ ये कोई……. सियासत तो नहीं है ।।
©डॉ वासिफ़ काज़ी, इंदौर
©काज़ी की कलम