रियायत कौन देता है दूकानदारी में,तंग हाथ रखे जाते हैं खरीददा
रियायत कौन देता है दूकानदारी में,तंग हाथ रखे जाते हैं खरीददारी में
मुहब्बत तो नेमत बड़ी है ईश्वर की,हाँ,मगर आँच नहीं आए ख़ुद्दारी में
तकरार, अक्सर बेवज़ह ही होती है,थोड़ी समझ तो मिले समझदारी में
दिल तो बस दिल है,मौसम तो नहीं,फागुन में रहे कुछ,कुछ पतझारी में
सादे दिल की तो कोई कीमत नहीं है,लोग हैं मसरूफ़ अपनी अदाकारी में
गुरबत मार देती ज़रुरत की खातिर,मुरव्वत कौन रखता तिजारतदारी में
ग़ज़ल होती नहीं फ़क़त कसीदों पर,रिश्ते नहीं बनते, महज़ हक़दारी में