रिमझिम रिमझिम बारिश में …..
रिमझिम रिमझिम बारिश में …..
वो रिमझिम रिमझिम बारिश में
मुझसे मिलने बाम पे आना
भीगे भीगे कपड़ों से
भीगा अपना तन छुपाना
हौले हौले पलकों को
कभी गिराना कभी उठाना
आग लगाती बारिश में
बूँदों का गालों पे आना
फिर भीगे भीगे अधरों का
हौले हौले मुस्काना
मुंह में दुपट्टे का कोना
दबा के थोड़ा शरमाना
फिर घटा सी अपनी ज़ुल्फ़ों को
रुख़ से अपने सरकाना
चुपके से अाना
बहाने से जाना
मारे हया के
सुर्ख हो जाना
वो हाथों से ख़म अपने
भीगे सुलझाना
जाता नहीं ज़हन से अब तक
वो बारिश में भीगा गुजरा ज़माना
ख़ुदा मेरे इस दिल को
कुछ देना न देना
मगर यादों से रिमझिम का
मौसम न लेना
सुशील सरना