*रिपोर्ट* / *आर्य समाज में गूॅंजी श्रीकृष्ण की गीता*
रिपोर्ट / आर्य समाज में गूॅंजी श्रीकृष्ण की गीता
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आर्य समाज,पट्टी टोला, रामपुर (उ.प्र.) के 124 वें वार्षिकोत्सव के शुभारंभ पर दिनांक 1 नवंबर 2022मंगलवार को स्वामी सच्चिदानंद जी (वैदिक उपदेशक, अलवर, राजस्थान) ने भगवद्गीता को आधार बनाकर अपना प्रवाहपूर्ण प्रवचन दिया। आपने यज्ञ को जीवन का आधार बताते हुए गीता का उद्धरण दिया और कहा कि जो बिना यज्ञ में योगदान किए हुए ग्रहण करता है, वह पाप का भागी होता है ।
आपने बताया कि गीता में प्रमुखता से मनुष्य द्वारा यज्ञ किए जाने की प्रेरणा मिलती है। यज्ञ मनुष्य का कर्तव्य है तथा यज्ञ रूपी नाव से ही हम इस संसार -सागर को पार कर सकते हैं। हमारे सभी सोलह संस्कार यज्ञ के साथ जुड़े हुए हैं । होली, दीपावली तथा रक्षाबंधन सहित सभी त्योहारों पर यज्ञ करना हमारी परंपरा है, जिसे हमें कभी नहीं भूलना चाहिए । हमारे महान पूर्वज राम और कृष्ण यज्ञ करने की ही परिपाटी हमारे सामने प्रस्तुत करते रहे हैं । महर्षि दयानंद से जब पूछा गया कि आप यज्ञ की अनिवार्यता के संबंध में गीता के कथन से कहॉं तक सहमत हैं ?,तो उन्होंने प्रश्नकर्ता से कहा था कि मनुष्य प्रतिदिन संसार के पॉंच तत्वों को प्रदूषित करता रहता है तथा उस सांसारिक प्रदूषण से उऋण होने का एक ही मार्ग है कि हम विश्व के वातावरण को यज्ञ के माध्यम से शुद्ध करने के लिए प्रयत्नशील रहें ।
स्वामी सच्चिदानंद जी ने जो कि गेरुआ वस्त्र पहने हुए थे, बताया कि मैं आपको केवल व्याख्यान नहीं दे रहा हूॅं, मैं एक कक्षा ले रहा हूॅं तथा आप को समझा कर अपनी बात कहना चाहता हूॅं। मनुष्य योनि स्वतंत्र होती है । इसमें व्यक्ति स्वतंत्र रूप से निर्णय लेकर किसी कार्य को कर सकता है । मनुष्य को जो कर्तव्य करने होते हैं,उन मूल कर्तव्यों में एक कर्तव्य यज्ञ करना होता है। यज्ञ से वातावरण शुद्ध होता है तथा हर व्यक्ति को उसका लाभ पहुंचता है । यह लाभ जाति, धर्म तथा रंगभेद से रहित होकर हर व्यक्ति के पास तक पहुंच जाता है और जब वह यज्ञ के द्वारा शुद्ध हुए वातावरण में सॉंस लेता है, तब उसे लाभ प्राप्त होता है । यज्ञ करना चाहिए । अगर कोई व्यक्ति अधिक यज्ञ करता है तो उसे महर्षि दयानंद के अनुसार पुण्य भी प्राप्त होगा ।
स्वामी सच्चिदानंद जी ने जनसमूह को बताया कि हम देवताओं को यज्ञ के द्वारा उनका भाग देते हैं,वह प्रसन्न होकर हमें कृपा प्रदान करते हैं । वस्तुतः देवता यज्ञ के माध्यम से ही भोजन ग्रहण करते हैं । अग्नि देवताओं का मुख है, ऐसा स्वामी सच्चिदानंद जी ने बताया और कहा कि जिस-जिस देवता के नाम की आहुति हम यज्ञ में देते हैं, वह भोजन उस देवता को प्राप्त हो जाता है ।
यज्ञ प्रकृति की नाभि है । जो यज्ञ करते हैं, वह इस संसार सागर से पार हो जाते हैं। कबीर के दोहे को उद्धृत करते हुए आपने कहा :-
चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय
अर्थात संसार रूपी जीवन और मरण के चक्र में हर व्यक्ति दिन-रात अपनी लीला समाप्त कर रहा है। किंतु उनके ही शिष्य मूलकदास ने एक यह बात कह दी :-
चलती चक्की देखकर, मूलक दियो हॅंसाय
कील सहारे जो रहा, सो साबुत बच जाय
अर्थात जो चक्की की कीली में दाने आ जाते हैं, वह कालचक्र से बच जाते हैं अर्थात यज्ञ रूपी नाभि की जो शरण प्राप्त कर लेते हैं, वह संसार रूपी भवसागर से पार उतर जाते हैं । स्वामी सच्चिदानंद जी ने कबीर के शिष्य मूलक दास का संदर्भ लेकर जो बात कही है, उसे अनेक विद्वानों ने उनके पुत्र कमाल का आश्रय लेकर भी उद्धृत किया है। किंतु इतना तो निश्चित है कि बात में बात सदैव से निकलती रही है।
स्वामी सच्चिदानंद जी ने अपनी गंभीर आवाज में श्रोताओं से कहा कि मैं जो बातें आपको बता रहा हूॅं, वह आपने यद्यपि अनेक बार सुनी भी होंगी लेकिन कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनको बार-बार दोहराया जाता है ताकि वह हमारे मानस से विस्मृत न हो जाऍं। यज्ञ करने के कर्तव्य के प्रति सचेत करना भी ऐसा ही कार्य है ।
कार्यक्रम का संचालन आर्य समाज के पुरोहित बृजेश शास्त्री जी ने किया । धन्यवाद प्रधान श्री कमल कुमार आर्य ने दिया । इस अवसर पर आयोजित यज्ञ में यजमान की भूमिका मंत्री श्री संजय आर्य ने निभाई तथा आयोजन की जिम्मेदारी को कोषाध्यक्ष श्री सुभाष चंद्र रस्तोगी ने भली-भॉंति सॅंभाला। वेद और गीता को आधार मानकर जनमानस में विशुद्ध सनातन चेतना को फैलाने के लिए आर्य समाज रामपुर बधाई का पात्र है।
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लेखक :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451