रिपब्लिक
सुनो, सुनो, सुनो!
गाँववालों सुनो।
तारीखों के ताँते में एक दिवस ऐसा है जिसे तरज़ीह दी जाएगी और जो कि गणतन्त्र दिवस के नाम से जाना जाएगा। कयास है कि इसी दिन हम सब में साल भर से अलसाई पड़ी देश-प्रेम की चेतना अंगड़ाई लेकर हिलोरें मारेगी। वास्ता इसके अर्थ से नहीं दिनांक से होगा, प्रसंग इसके वज़ूद का नहीं चमक-धमक का होगा। इस दिन तिरंगे की छाती गरिमा तले और भी चौड़ी हो जाएगी। देशहित के मुद्दों की फाइलों के बीच गुम हुई देशनिर्माण के अगुवों की तस्वीरों से धूल हटाई जाएगी। लोगों के हुजूम के मुख से इकट्ठे उच्चरित होकर ‘जन-गण-मन’ के शब्द आकार लेंगे। राष्ट्रीय कर्मकांड के उपरांत कार्यक्रम होंगे। राष्ट्रीय पताका आकाश से लेकर बच्चों के गालों तक छाया होगा। लाउडस्पीकरों से आती भाषणों की आवाज़ से हमें पता चलेगा कि इसी दिन संविधान निर्मात्री सभा द्वारा स्वीकृत संविधान में भारत के गणतंत्र स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई। देशप्रेम के गीत सुनकर कुछ-कुछ तो जरूर होगा और दिवस का बोझ ओज में परिणत भी। काबिले गौर है कि वतन की अस्मिता पर खूब चर्चाएं होंगी, बधाइयाँ बँटेंगी, सैन्ययात्राएँ निकलेंगी, सलामी ली-दी जाएगी, फूल बरसेंगे और चेहरे चमकेंगे। संविधान को ताक़त मान इसके पन्नों में निहित गुढ़ों को आत्मसात करने से प्रेरणा और समसामयिक परिदृश्य और समस्याओं को समझने और जूझने का बल मिलेगा। वहीं दूर कहीं भारत माता के चेहरे की रेखाएं भी कुछ बदलेंगी!