*रिटायर (कहानी)*
रिटायर (कहानी)
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“क्या बात है ? साढ़े नौ बज चुके हैं । अभी तक न दाढ़ी ही बनाई है न नहाए हो ? क्या आज दुकान नहीं जाना है ? ”
रेखा ने कहा तो सुधीर का मन कुछ बुझा-बुझा हो गया। निढाल स्वर में कहने लगा -“क्या बताएं ? हम दुकानदारों की तो जिंदगी में कभी रिटायरमेंट आता ही नहीं है । अब मुझे ही देख लो अढ़सठ साल की उम्र हो गई है । कभी हाथों में दर्द रहता है ,कभी पैरों में । कितनी भी थकावट हो लेकिन ताली लेकर दुकान खोलने जाना पड़ता है। चार पैसे नहीं कमाए तो गृहस्थी कैसे चलेगी ?”
पति के विचारों को सुनकर रेखा भी उदास हो गई । पिछले करीब एक साल से सुधीर को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होने लगी थीं और वह आए-दिन अपनी पत्नी से यही कहता था कि जिनकी सरकारी नौकरी है और जो साठ साल की उम्र में रिटायर हो जाते हैं उन्हें पेंशन भी मिलती है और वह बुढ़ापे में आराम से जीवन भी व्यतीत करते हैं ।
“हम लोग तो कितनी भी उम्र हो जाए ,बस दो पैसों के लिए दुकान पर ही जिंदगी खपाते रहेंगे।” सुधीर ने थकावट से भरे स्वर में रेखा से यह बात कही और फिर बिस्तर से उठ गया । आखिर एक दुकानदार भला कब तक और कितनी देर तक बिस्तर पर आराम कर सकता है ? उसे दुकान जाना ही होता है । फटाफट दाढ़ी बनाई ,नहाया और चाय पी कर सुधीर दुकान पहुँच गया। दुकान खोल कर बैठा ही था कि सामने से दिनेश बाबू को आते हुए देखकर सुधीर का मन प्रसन्न हो गया। दोनों बचपन से मित्र थे। एक साथ पढ़े थे ।
“आओ भाई दिनेश ! क्या हाल-चाल हैं? सब बढ़िया चल रहा है?”
सुनकर दिनेश ने अपना चेहरा लटका लिया । कहने लगा ” तुम्हारे मजे हैं सुधीर बाबू ! कम से कम तुम्हें एक नियमित दिनचर्या तो मिल रही है। समय पर उठना, समय पर नहाना ,समय पर दुकान खोल लेना और फिर बाजार में बैठे हो । चहल-पहल तथा सक्रियता भी बनी रहती है । हमारा तो जब से रिटायरमेंट हुआ है समझ लो बुढ़ापा दस साल पहले आ गया । न यह पता चलता है कि सुबह के आठबजे हैं न यह पता चलता है कि कब बारह बज गए ? कोई भी बिस्तर से उठाने वाला नहीं ! कोई नहाने के लिए टोकने वाला नहीं ! ”
“लेकिन यह तो अच्छी बात है । अब तुम आजाद हो । तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं कि तुम्हें निश्चित समय पर कहीं जाना है। जितनी चाहे मौज लो । जैसे चाहे रहो ।”
” यह सब कहने की बातें हैं । वास्तव में तो चार लोग मिलते हैं ,एक निश्चित रूटीन होता है तभी जिंदगी का मजा है । अनुशासन में ही जीवन का आनंद होता है। जहाँ रिटायर हुए ,अनुशासन छूट जाता है । फिर कटी पतंग की तरह व्यक्ति डोलता रहता है ।” दिनेश ने अपने मन के उदगार दस-बीस मिनट की बैठक में ही सुधीर के सामने रख दिए । सुधीर की समझ में अब नहीं आ रहा था कि वह अपने को सुखी माने की दुखी ?
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451