■ सामयिक / रिटर्न_गिफ़्ट
#रिटर्न_गिफ़्ट
■ लिए जाओ और दिए जाओ दानवीरों!
★ राज आपका, साम्राज्य आपका
【प्रणय प्रभात】
मैंने बरसों पहले एक ग़ज़ल में एक शेर कुछ यूं कहा था-
“दीन पे क्यूं कर किसी के, में उठाऊं उंगलियां?
बेवफ़ा गर बेवफ़ाई, ना करे तो क्या करे??”
प्रसंगवश अपना यह शेर मुझे आज अनायास ही याद आ गया। साथ ही याद आ गई “बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना”, “घर का पूत कंवारा डोले पाड़ोसी का फेरा”, “नेकी कर दरिया में डाल” जैसी तमाम कहावतें और कुछ किस्से भी। जिन्होंने याद दिलाई बीते साल की दास्तान। सोचा, आपको भी याद दिला दूं।
घोर महामारी के बीच हमारी उदार और आदर्शवादी सरकार ने पड़ोसी को बिना मांगे थोक में वैक्सीन भेजी थी। बदले में ड्रोन, ड्रग्स से लेकर आतंकी, उन्मादी, हथियार, नक़ली नोट और हथियार आज तक आ रहे हैं। बीच-बीच में बिना मांगें घुड़कियाँ और धमकियां भी। शायद बोनस में। वो भी तब जब अगले को बोटी तो दूर रोटी तक के लाले हैं। घर मे दाने न होने के बाद भी अम्मा रोज़ भुनाने जा रही है। मतलब नंगे नहा ही नहीं रहे, निचोड़ भी रहे हैं।
सारी बात का निचोड़ यह है कि हमारे आकां अतीत से कोई सबक़ लेने को राज़ी नहीं। जैसे भी हो बस वाह-वाही होती रहनी चाहिए। फिर चाहे करगिल हो या पुलवामा। पठानकोट हो या कुछ और। क्या फ़र्क़ पड़ता है? फ़ौज में कौन सी नेताओं की औलादें शहीद हो रही हैं। सारा टोटा देश की जनता के लिए है। फिर चाहे कर्मचारियों के पेंशन का अधिकार हो या युवाओं के रोज़गार का हक़। बुजुर्गों को यात्री भाड़े में छूट का मामला हो या बुनियादी समस्याओं के स्थायी समाधान का।
जहां तक पड़ोसी की ढीठता और अकड़ का सवाल है, आप टीव्ही चैनल की डिबेट्स देखिए। हमारे देश के कुछ बेवक़ूफ़ अपने देश में “ऑल इज़ वेल” साबित करने के चक्कर में पड़ोस के दो-चार कुतर्कियों से रोज़ भेजा-भड़क करते हैं। जो आर्थिक नंगेपन के मुद्दे पर बेशर्मी की फटी चादर डाल कर भारत को अपने काम से काम रखने की सलाह देने से नहीं चूकते। हाथ मे कटोरा लेकर दुनिया की दहलीज़ पर गुहार लगाने वाले कश्मीर को लेकर आए दिन नसीहत देते हैं। फिर भी हमारा काम इनके बिना नहीं चलता। मतलब जैसी सरकार, वैसी मीडिया। पता नही इन्हें क्या हासिल होता है दूसरे के घर मे दिन-रात ताक-झांक कर के। शर्म की बात यह है कि इन्हें अपने मुल्क़ के हालात पर तटस्थ होकर बात करने की फुर्सत नहीं। तभी जबरिया हमदर्दी दिखा कर खुले आम जूते खाते हैं मीडियाई मुर्गे। वो भी सुबह-सवेरे।
विडम्बना की बात तो यह है “दानवता की मदद” को “मानवता” ठहराने पर आमादा महापुरुषों ने दशमेश गुरु गोविंद सिंह जी की नसीहत तक को भुला दिया। तभी जबरन दानवेन्द्र राजा बलि, महादानी कर्ण और भामाशाह बनने का प्रयास जारी है। वो भी “माले-मुफ़्त दिले-बेरहम” के अंदाज़ में। सनक सब कुछ लुटा कर भी होश में न आने की। ताकि रेवड़ियां बंटती रहें और झूठा जय-जयकार होता रहे। चाहे उसके बदले मुल्क़ को कोई भी क़ीमत अदा करनी पड़े। लगे रहो मिशन पर। दिए जाओ तोहफ़े और लिए जाओ “रिटर्न गिफ्टस।” राज आपका, साम्राज्य आप के बाप का। हम कौन…? “ख़ामखां…!!”
★संपादक★
न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)