रिटर्न गिफ्ट
रिटर्न गिफ्ट
‘बाबू, सुबह से भूखे हैं, कुछ नहीं खाया ।’ कहते हुए हाथ फैला दिये । पति-पत्नी दोनों ही फटेहाल हालत में लोगों से उम्मीद लगाये बैठे थे । लोग आ रहे थे, जा रहे थे, कुछ उनकी ओर देखते और यह सोचते हुए बढ़ जाते कि इन लोगों का तो यही काम है । बस सुबह घर से निकलो, कोई काम न धाम, हाथ फैला कर खड़े हो जाओ । झूठ बोलते हैं कि सुबह से कुछ खाया नहीं है । खाया न होता तो नज़र आ जाता । तरह तरह की बातें सोचते हुए लोग जा रहे थे । शाम होने को थी । सूर्य अस्त होने के साथ साथ उनकी उम्मीदों का सूर्य भी अस्त होने चला था । शायद रात्रि की नींद आकर उनकी भूख को शान्त कर दे । जब सो ही जायेंगे तो भूख भी भूल जायेंगे । रात्रि अब दूर नहीं थी । सूर्य पूरी तरह अस्त हो चुका था । अंधेरा छा गया था । सड़कों की बत्तियाँ जगमगा उठी थीं । कुछ और लोग भी घर से निकले थे भोजन की तलाश में । पर वे अलग किस्म के थे । उनके पास धन था और उन्हेें इस बात की फिक्र थी कि कहाँ जायें ताकि सबसे अच्छा, साफ सुथरा और स्वादिष्ट खाना मिले और उसके बाद मीठा हो जाये तो बात ही क्या । जिस बाज़ार में दोनों पति पत्नी खड़े थे उस बाज़ार में शाम के हलके अंधियारें में जगमगाते रेस्तराओं की भीड़ थी । और उन रेस्तराओं के बाहर थी पैसे वालों की भीड़ जो वहाँ खाना खाने आये थे । पति-पत्नी सड़क पर दाता को ढूंढ रहे थे और भीड़ वाले रेस्तराओं के बाहर भीड़ में आये परिवार रेस्तराओं के स्टाफ से अन्दर टेबल के नम्बर जल्दी देने की माँग कर रहे थे । पति-पत्नी और धनाढ्य परिवार दोनों ही भूखे थे, एक रेस्तराँ के अन्दर जाने के लिये अनुनय विनय कर रहा था तो दूसरा सड़क पर लोगों से कुछ मिलने की अनुनय विनय कर रहा था ।
छोटी बड़ी हर तरह की गाड़ियों का हुजूम लगा था रेस्तराओं के बाहर । पार्किंग की जगह बमुश्किल मिल रही थी । जिस जगह भीख मांगता वह जोड़ा खड़ा था वहाँ पर एक गाड़ी आकर रुकी और उसमें से एक व्यक्ति निकला और उस जोड़े की तरफ बढ़ चला । अपनी ओर आता देख कर उस भिखारी जोड़े को यकीन हो गया कि किसी ने तो उनकी सुनी । अब तो दिन भर का भूखा पेट भर जायेगा । इसी सोच में उनकी आँखें चमक उठी थीं । उनमें थोड़ी सी चेतना भी आ गई थी । पर उनकी सभी आशाओं पर तुषारापात हुआ जब उस व्यक्ति ने वहाँ आकर उस भिखारी जोड़े को कहा ‘क्या रास्ते में खड़े हो, हटो यहाँ से, गाड़ी का रास्ता रोक रखा है, हटो, गाड़ी लगानी है ।’ यह कह कर उन्हें वहाँ से हटने का इशारा करते हुए वह व्यक्ति गाड़ी में जाकर बैठ गया और गाड़ी को वहाँ तक ले आया । अभी अपनी आशाओं पर गिरी तुषारापात की बिजली से वे संभल भी नहीं पाये थे कि गाड़ी की हैडलाइट्स की तीखी रोशनी में उनकी आँखें चुंधिया गईं और वे हट नहीं पाये क्योंकि उनकी आँखों में गाड़ी की रोशनी से अंधेरा हो गया था । गाड़ी के लगातार बजते हाॅर्न ने रही सही कसर भी पूरी कर दी । वे बुरी तरह से घबरा गये थे । गाड़ी में से नौजवान फिर निकला और गुस्से से बोला ‘तुम सुनते भी नहीं हो क्या ? अभी बोल कर गया था । पर वहीं के वहीं डटे हो । गाड़ी से टकराने का ख्याल है क्या ? मैं तुम्हारी सोच को अच्छी तरह से जानता हूँ । गाड़ी से टकरा जाओ और फिर गाड़ी वाले को ब्लैकमेल करो । मैं अभी पुलिस को बुलाता हूँ । भिखारी जोड़ा बुरी तरह से घबरा गया था और उसके मुँह से आवाज भी नहीं निकल रही थी । बड़ी मुश्किल से वह वहाँ से हट पाया ।
रेस्तराओं के बाहर की भीड़ बदलती जा रही थी । जिनका नम्बर आ गया था वे अन्दर खाने की टेबलों तक पहुँच गये थे और बेसब्री से इन्तज़ार कर रहे थे कि कब आॅर्डर लेने वाला आये और जल्दी से खाना परोसा जाये । उनसे कुछ पलों की देरी भी बर्दाश्त नहीं हो रही थी और बाहर भिखारी जोड़ा सुबह से भूखा था । इतने में इंतजार कर रहे परिवार की टेबल पर खाना परोस दिया गया । खाने को देखते ही परिवार के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई और सब खाने में व्यस्त हो गये । आॅर्डर पर आॅर्डर देते गए और खाने का स्वाद लेते रहे । अन्त में मीठे का स्वाद भी लिया गया । बिल अदा करने के साथ साथ वहाँ पड़ी मीठी सौंफ का भी आनन्द लिया ताकि खाना हजम हो जाये । क्षुधा शांत हो चुकी थी । वेटर को भी उसकी टिप दी जा चुकी थी । वहीं बाहर खड़े भिखारी जोड़े को खाने परोसने वाला कोई नहीं आया था । आज उनकी किस्मत ही खराब थी । उनके भूखे पेट की क्षुधा शान्त करने और उनके बुझे चेहरों पर मुस्कुराहट के दीप जलाने कोई इंसान अभी तक नहीं आया था । जबकि बाजार में बड़ी बड़ी लाइटें जगमगा रही थीं ।
मन्दिरों में शाम की आरती का समय हो गया था । घंटियां मधुर संगीत सुना रही थीं । बाजार के एक किनारे में मन्दिर था । घंटियों की आवाज़ सुनकर भिखारी जोड़ा उस ओर चल पड़ा । यह सोचकर कि भगवान के अपने घर से तो जरूर कुछ मिल जायेगा । भक्तजन आने लगे थे । भिखारी जोड़ा मन्दिर के द्वार तक पहुँच गया था पर अन्दर जाने की हिम्मत नहीं थी और अन्दर जाकर करना भी क्या था । जेब में कोई पैसे तो थे नहीं जो भगवान पर चढ़ाते, फूल थे नहीं जो भगवान को अर्पित करते, मिठाई भी नहीं जो भगवान को भोग लगाते । भिखारी जोड़ा भी भगवान की सन्तान था और मन्दिरों में आने वाले भक्त भी भगवान की सन्तान थे । दोनों ही इन्सान थे पर इन्सानियत का रिश्ता कहीं भी नहीं दिख रहा था । मन्दिर में जाने वाले लोग खूब जोर शोर से भगवान की पूजा कर रहे थे और अपने लिये खुशियाँ माँग रहे थे । बाहर निकलते तो मन्दिर के पुजारी उन्हें हाथ में प्रसाद दे देते । बाहर निकल कर वे प्रसाद का एक हिस्सा उस जोड़े को भी दे देते । पर प्रसाद मुँह में जाते ही वह ऐसे ही खत्म हो जाता जैसे गर्म तवे पर पड़ी पानी की एक बूँद । अभी तक तो उस भिखारी जोड़े की भूख भी उनकी साथी बनी शांत होने का इंतज़ार कर रही थी । पर प्रसाद के कुछ कण मुख में जाते ही भूख का दानव जाग गया था और भिखारी जोड़े को परेशान करने लगा था ।
इतने में एक बालिका अपने पिता के साथ वहाँ से गुजरी । भिखारी जोड़े ने उस बालिका से भी भीख माँगने के लिए हाथ फैलाया । एक बार तो बालिका डर सी गई । पिता का ध्यान नहीं था । बालिका ने पिता का हाथ खींच कर रोका । पिता ने मुड़ कर देखा तो बालिका उस भिखारी जोड़े की ओर इशारा कर कह रही थी ‘पापा, ये भूखे हैं इन्हें कुछ दे दो ।’ ‘बेटी, देर हो रही है । हमें तेरे जन्म दिन का केक लेते हुए वापिस जाना है । चल इधर आ । जल्दी कर ।’ बालिका में शक्ति आ गई थी । उसने पिता से कहा ‘पापा आज मेरा जन्मदिन है, आज तो मेरी चलेगी न । फिर आपको मेरी बात माननी पड़ेगी ।’ पिता बेटी की मासूमियत से हिल गए । बोले ‘क्या चाहती है, जल्दी बता ।’ बेटी खुश हो गयी थी । बोली ‘पिताजी इन्हें सामने वाले होटल में ले चलो । वहां इनको खाना मिल जायेगा । आप घर में भी आने वालों को आज खाना खिलाओगे न तो इनको भी खिला दो ।’ पिता नरम पड़े और उन्होंने बेटी के हाथ चूम लिये । फिर भिखारी जोड़े को अपने साथ चलने के लिए कहा । वे उनके साथ चल पड़े । होटल में जाकर उन्होंने कहा कि इन दोनों को जितना खाना चाहें खिलाओ । पैसे मैं दूँगा ।’ दोनों होटल के बाहर बने बैंच पर बैठ गये और उन्हें खाना परोस दिया । वे खाना खाते जा रहे थे । उनके मुर्झाये चेहरों पर मुस्कान खिल उठी थी । अश्रु धार बह चली थी जिसे रोकने या पोंछने का वे कोई प्रयत्न नहीं कर रहे थे । अश्रु धार भोजन के साथ ही उनके मुख में जा रही थी ऐसे जैसे कि गंगाजल ।’ उनकी खुशी और उनके चेहरों पर आई मुस्कान ने पिता-पुत्री को भी भावुक कर दिया था । पिता कह रहे थे ‘ले बेटी तेरी पार्टी की शुरुआत हो गई ।’ बेटी बोली ‘और हाँ पापा, मुझे रिटर्न गिफ्ट भी मिल गया ।’ पिता बोले ‘वह कैसे’ ? बेटी फिर बोली ‘पापा, इनके चेहरों पर जो मुस्कान है वह मेरे लिये सबसे बड़ा रिटर्न गिफ्ट है ।’ बेटी की समझ भरी बातों से गर्व महसूस करते पिता बेटी को लेकर आगे बढ़ गये थे । ऐसा लगा कि भगवान भी मुस्कुरा उठा है । उधर मन्दिर में भक्त भगवान से पूछ रहे थे ‘कैसे करूं तेरी पूजा ।’ भगवान समझा रहे थे, ‘तू खुद भी मुस्करा औरों को भी मुस्कुराने की वजह दे बस हो गयी मेरी पूजा।’