रिक्शा चालक
रिक्शा चालक
पौष की सर्द भरी बर्फीली रात में
बरेली रेलवे स्टेशन के बाहर
रिक्शे पर अधलेटे चालक
इंतज़ार कर रहे हैं,
एक अदद सवारी की
जिससे प्राप्त किराये से
सुबह होते ही
मुखातिब हुआ जा सके
दैनिक खर्च ,
दो जून की रोटी
पाल्यों की फीस आदि से।
आगे से आती हुई
सवारी देख
एक सोचता है
अबकी खाली नहीं
जायेगी मेरी बारी।
वह उठता है
स्वागत की मुद्रा में
सामान पकड़ने को
हाथ बढ़ जाते हैं स्वयं
मोल भाव होता है
तभी एक आटो चालक
चिल्ला कर बुला लेता है
आधी दर पर।
और हाथ आयी सवारी
उसके सामने से
ऐसे चली जाती है जैसे
कोई उसकी रोटी को
हाथ से छीन कर ले गया हो…
और वह उदास होकर
अगली सवारी की
प्रतीक्षा में पुनःलेट जाता है
रिक्शे पर…
मोती प्रसाद साहू