राज़ की बातें
रात छत पर टहलते हुए
देखे मैंने दो चाँद
आपस में बतियाते हुए
एक जिसकी रौशनी
सारा आलम भिगो रही थी
दूसरा धड़क रहा था शायद
साँसे चल रही थी उसकी
एक दुसरे की आँखों में
आँखे डाले, टकटकी लगाये
घंटों जाने क्या देख रहे थे दोनों
दोनों की तखलीक में कई
राज़ पोशीदा थे शायद
ऐसा लगता था जैसे
कह रहे हो अपने मन की
व्यथा दोनों !!!
कुछ राज़ जो ज़माने
के लिए नहीं थे शायद
एक आसमां पर
तो दूसरा ज़मीं पर
अपनी जिंदगी के कुछ
अनसुलझे हिस्सों को
सुलझाने की नाकाम कोशिश में
अपने ग़म का बोझ
हल्का कर रही थी
बाँट कर अपना दर्द
आसमां के चाँद से …
वो एक लड़की सांवली सी ….
नज़ीर नज़र