राह मे मुसाफिर तो हजार मिलते है!
राह मे मुसाफिर तो हजार मिलते है!
पर कोई एक है जो साथ चलते है!!
जिसके उदास होने से आप दुखी,
मुस्कुराने भर पर हीआप खिलते है!!
ऐसे हमसफर को हमनवा कहते है,
और हमनवा को भी आप छलते है!!
अरे कैसे है इनसान जो हमनवा को,
जूती की मानिन्द रोज़ रोज़ बदलते है?
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट कवि पत्रकार 202 नीरव निकुंज पीएच2 202 नीरव निकुंज पीएच2 सिकंदरा आगरा-282007 आगरा उत्तर प्रदेश