राह में अजनबी मिला कोई
राह में अजनबी मिला कोई
दे गया दर्द फिर नया कोई
दफ़अतन आ के कुछ ही लम्हों में
प्यार मुझसे जता गया कोई
एक-दूजे के दिल में रहते हैं
दरमियाँ है न फ़ासला कोई
ढूँढ़ता फिर रहा जहाँ सारा
एक मुद्दत से लापता कोई
एक आवाज़ तो हुई छन से
दिल है टूटा या आइना कोई
मिल गया था वो मील का पत्थर
पर वहाँ था न क़ाफ़िला कोई
जब गवाही नहीं न आदिल है
आज होगा न फ़ैसला कोई
जब न बाक़ी है सिलसिला कोई
कै से कह दूँ है वास्ता कोई
हो सके ढूँढ़कर भी ले आओ
है न ‘आनन्द’ दूसरा कोई
शब्दार्थ:- दफ़अतन = अचानक, आदिल = जज
– डॉ आनन्द किशोर