“राह कौन बताए”
सुनसान रातें विरान गलियां हर राहें।
भटके पथिक को राह कौन बताए।
सहमें से बैठे चौबारे और हर चौराहे।
है अमा कोई तारा रोशनी तो जलाए।
थमा वक्त मंजर दुबक कर भरता आहें।
इस अंधेरे का कोई सूरज तो लेआए।
-शशि “मंजुलाहृदय”
सुनसान रातें विरान गलियां हर राहें।
भटके पथिक को राह कौन बताए।
सहमें से बैठे चौबारे और हर चौराहे।
है अमा कोई तारा रोशनी तो जलाए।
थमा वक्त मंजर दुबक कर भरता आहें।
इस अंधेरे का कोई सूरज तो लेआए।
-शशि “मंजुलाहृदय”