राह के काँटे
तुम्हारी राह के सभी काँटे मैं चुन लूँगा
जो सपने तुमने देखे हैं उन्हे मैं बुन लूँगा
बस थोड़ा सा तरस खाओ अब तो हमारे ऊपर
तुम्हारे वास्ते मैं दुनियाँ का हर ताना सुन लूँगा
अशोक मिश्र
तुम्हारी राह के सभी काँटे मैं चुन लूँगा
जो सपने तुमने देखे हैं उन्हे मैं बुन लूँगा
बस थोड़ा सा तरस खाओ अब तो हमारे ऊपर
तुम्हारे वास्ते मैं दुनियाँ का हर ताना सुन लूँगा
अशोक मिश्र