राह और राही
*** राह और राही ***
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पथ का सिंगार है राही
चलता रहे अथक राही
राहों पर बढ़ता राहगीर
मंजिल पर पहुंचता राही
पथभ्रमित हो जाए तो
भटकता सदा है राही
काँटों भरी डगर पर तो
विचलित हो जाए राही
हमराही मिल जाए तो
रस्ता काट पाता राही
रास्तों से निकले रास्ते
भंवर बीच फंसे राही
दरख्तों की घनी छाया
विश्राम करता है राही
नहरों , नदी, निर्झनों से
प्यास बुझाता है राही
मार्ग पर मार्गदर्शक
मार्गदर्शन पाते हैं राही
मौसम अगर सदाबहार
राह आसान खुश राही
हो जाएं कभी समाहित
दर्रे में फंसता राही
मनसीरत सदा है पथिक
जीवनपर्यंत है राही
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)