राहों से हम भटक गए हैं
राहों से हम भटक गए हैं
अपनी कोई राह नहीं है
ढो रहे हैं हम सब ही रिश्ते
दिलों में मगर चाह नहीं है।।
सूर्यकांत
राहों से हम भटक गए हैं
अपनी कोई राह नहीं है
ढो रहे हैं हम सब ही रिश्ते
दिलों में मगर चाह नहीं है।।
सूर्यकांत