राहें
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काली काली राहों में
दूंधली सी एक किरण की आस।
खो रहें हैं खुद में हम तो,
उजली सी सेहर की तलाश।
केह दे कोई ये हमसे
राहें सारी ऐसी ही हैं।
शायद कहीं हो जाए हमें,
यूंही चलते रहने से प्यार।
ख्वाबों के बोझ तले,
आँखें ये अब थकने को हैं।
मंजिल की प्यास में देखा नहीं,
हर मोड़ पे बेह रहा था आब।
– सिद्धांत शर्मा