राहें सरल बनाऊँ कैसे
राहें ‘सरल’ बनाऊँ कैसे ,
अपनों को समझाऊँ कैसे।
सत्य जब डरा हुआ हो,
असत्य भरमा रहा हो।
सबको बात बताऊँ कैसे,
खुद को राह दिखाऊँ कैसे।
राहे ‘सरल’——-
धर्म पर पहरेदार खड़े हों,
अधर्म कि ध्वजा फहर गई हो।
ऐसे में घर जाऊँ कैसे,
ठाकुर के दर जाऊँ कैसे।
अपनी बात बताऊँ कैसे,
अपनो को समझाऊँ कैसे।
राहें सरल ——
इतनी नफ़रत दुनियां में क्यों,
विनाश की आहट दुनियां में क्यों।
प्रेम का पंथ बनाऊँ कैसे,
सब का मन बहलाऊँ कैसे।
मन की बात सुनाऊँ कैसे,
दुनियाँ को समझाऊँ। कैसे।
राहें सरल ——
दिल में सब के लालच कितना,
नील गगन और सागर जितना।
बाहर नैया लाऊँ कैसे ,
लहरों से टकराऊँ कैसे।
दिव्य- ज्योति जलाऊँ कैसे,
सनकी को समझाऊँ कैसे ।
राहें सरल—–
अतीत भँवर में फंसा हुआ है,
जग की धुंध मिटाऊँ कैसे।
धर्म के अंधे कान के बहरे,
इनको राह दिखाऊँ। कैसे।
लाख गुत्थीयाँ उलझी हुई है,
उन सब को सुलझाऊँ कैसे।
राहें सरल ——