राही
हिलोरें भरता सागर हूं मैं शांत रहना क्या जानूं।
अविरल बहती धारा हूं मैं थककर रुकना क्या जानूं ।।
मांझी हूं तो तूफानों से लड़ना मैने सीख लिया।
कठिन राह पथरीली है पर चलना मैने सीख लिया।।
सुमन मिलें या शूल मिले मैं थककर रुकना क्या जानूं।
एक अकेला राही हूं मैं मेलों से मुझे क्या करना।।
निशा के कालेपन में तिमिर से मुझको क्या डरना।
परे झटककर अंधकार को दिया जलाना क्या जानूं।।
खुशी मिले या मिले निराशा क्लेश ह्रदय में तनिक नहीं।
बसंत हो या हो पतझड़ उल्लास खेद मुझे तनिक नही।।
निर्लिप्त भाव से जीवन जीना मैं शोक मनाना क्या जानूं।
हिलोरें भरता सागर हूं मैं शांत रहना क्या जानूं।।
उमेश मेहरा (शिक्षक)
गाडरवारा (म प्र)
9479611151