“राहत”
माना की दर्द का इलाज अाँसू तो नही है,
मगर रो लेने दो आँखों को गर राहत मिले।
भटका किये उम्रभर हम श्मशानों में,
बैठ जाने दो पास गर रूह को राहत मिले।
बरसों रहे लब तनहा और उदास,
हँस लेने दो उन्हें गर जी को राहत मिले।
उड़ गया हवाओं में मेरा सुँकू ना जाने कहाँ,
बस जाने दो साँसों में गर नींद को राहत मिले।
पाकीज़ा है मेरे मन का कोना-कोना “सरिता”,
क्या बुरा उसको सोचकर गर जिस्म को राहत मिले।
गहरा है संमदर क़श्ती को इसका पता क्या,
डूब जाने दो क़श्ती को गर लहरों को राहत मिले।
उठाते है वो उगलियाँ छोटी बातों पर अक्सर,
हो जाय वो ही मसीहा गर उन्हें चैनों राहत मिले।
#सरितासृजना