रास्ते जहाँ जाने से इनकार करते है
रास्ते जहाँ जाने से इनकार करते है
पगडंडियाँ जहाँ पतली,छोटी हों और टूट जाए
मैं वहीं उस छोर पे चुपचाप रहता हूँ
रोशनी की ख़्वाहिशें भी ख़ुद मंद हो जाए
उस तमस के गोशों में,मैं अलख परेशान रहता हूँ
मुट्ठी में भींच रख लिए हैं चाँद-सितारे
उजियारा भी न जाने कहाँ छिपाए बैठा हूँ
ख़ुद की बस्ती अब आसमानों से नहीं
उन ऊँची ऊँची दीवारों से ढ़काए बैठा हूँ
किसी ने उन दीवारों पर भी पहरा लगाया है
मेरे हिस्से का बचा सूरज भी मुझसे चुराया है
मुझे पुरज़ोर ताबानी का वादा दिखा मखसूस
हर बार की तरह तीरगी का तंज चुभाया है
वो देखो सामने किसी ने सर मुंडवाया है
ओह किसी ने फिर उसे टोपी पहनाया है
मेरे यार वो कोई और नहीं वो मेरा शहर है
किसी ने फिर शहर पे सियासती चादर चढ़ाया है
रास्ते जहाँ जाने से इनकार करते हैं
मैं वहाँ,अफ़सोस है चुपचाप रहता हूँ………..
अलख-जो देखा न जा सके।
ताबानी-उजाला रोशनी
तीरगी-अँधेरा
तमस-अंधकार
मखसूस- ख़ास, प्रमुख, प्रधान।
यतीश १५/११/२०१७